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जानिए ससुर खदेरी नदी की कहानी, इन दिनों इस नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा है संकट...

ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह 

कौशाम्बी : जनपद जनपद में गंगा यमुना नदी के सा ससुर खदेरी नदी का भी अपना एक अस्तित्व और महत्व है, लेकिन समय के मार्ग पर चलते पर संकट मंडरा रहा है, ससुर खदेरी नदी पर जगह-जगह पानी ग्रामीण और भूमाफिया कब्जा कर रहे हैं जिससे वह नाले में तब्दील होती जा रही है, वैसे भी नदी में पानी केवल बरसात और बाढ़ के मौसम में ही आता है बाकी मौसमों में यह सूखी रहती है, जिसका फायदा उठाकर कुछ स्थानी किसान और भूमाफिया प्लॉटर नदी की भूमि पर अवैध कब्जा कर लिए है ।

ससुर खदेरी नदी के इतिहास पर चर्चा करें तो यह उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद से निकली हुई सबसे चर्चित नदियों में से एक है, दोआबा क्षेत्र में ससुर खदेरी नदी अपने 'सतीत्व' के लिए जानी जाती हैं, लेकिन यह इन दिनों मानव समाज की नाहक छेड़छाड़ का शिकार हो गई है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, इस नदी की जलधारा का बहाव बदल कर पड़ोसी गांवों के लोग इसकी रेत में खेती किसानी करने लगे हैं परिणाम स्वरूप भारी भरकम नदी का असली रूप ही गायब हो गया है, बताते चलें कि फतेहपुर जनपद के हथगाम इलाके के सेमरामानपुर गांव की जगन्नाथ झील से उद्गमित ससुर खदेरी नदी कभी बरसात में उग्र रूप धारण किया करती थी, लोगों में मान्यता है कि सतीत्व के लिए चर्चित इस नदी का जलस्तर तभी घटा करता था, जब पास पड़ोस के गांवों की महिलाएं झुंड में आरती और पूजा अर्चना कर मान मनौव्वल करती थीं लेकिन अब हालात हैं कि भारी भरकम जलधारा सिमट कर नाले में बदल गई है, नदी के उद्गम स्थान जगन्नाथ झील में भी झाड़ झाखड़ और घास फूस उग आया है ।

इस ससुर खदेरी नदी की प्रचलित किंवदन्ती के बारे में सेमरामानपुर गांव के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि हजारों साल पहले जगन्नाथ झील के किनारे ऊंचे टीले में जगन्नाथ धाम का एक मंदिर था, गांव की एक बहू रोजाना तड़के झील में स्नान करके मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की पूजा करने जाया करती थी, उसका ससुर अपराधी किस्म का था, एक दिन जब बहू मांदिर में भगवान की पूजा में व्यस्त थी, उसी समय उसका ससुर वहां पहुंच कर उसकी अस्मत लूटना चाहा, वह अपनी अस्मत बचाते हुए भागने लगी, उसका ससुर उसे खदेड़ता चला गया, बताते हैं इस पुजारिन की रक्षा के लिए झील से एक तेज जलधारा निकली थी जो ससुर बहू के पीछे पीछे बह रही थी, थक कर बहू ने प्रयागराज की सीमा के समीप यमुना नदी में कूद कर जान दे दी, पीछे से बह रही जलधारा ने ससुर को भी यमुना में धकेल दिया, जिससे उसकी भी मौत हो गई थी, तभी से लोग इस नदी को ससुर खदेरी नदी के नाम से पुकारने लगे, ससुर खदेरी नदी की जलधारा यमुना नदी में प्रयागराज जिला के उसी स्थान में गिरती है जहां बुजुर्ग लोगों के अनुसार बहू ने यमुना नदी में कूदकर जान दे दी थी ।

एक किंवदंती यह भी है जिसे कौशाबी के कुछ स्थानीय लोग बताते हैं कि जिला फतेहपुर की एक बहू अपने अस्तित्व के लिए जानी जाती थी एक दिन वह अपने खेतों में निर्वस्त्र होकर धान के पौधों को रोपित करने के लिए उठाकर फेंक रही थी और धान अपने आप खेत में लग जा रहे थे, तभी खेत में हाथ बंटाने के लिए अचानक उसका ससुर वहां आ गया उसने देखा कि उसकी बहू निर्वस्त्र होकर धान के पौधों को उठाकर खेत में फेंक रही है और धान अपने आप लग जा रहे हैं यह देखकर वह समझा कि मेरी बहू कोई देवी है मुझे इसके पांव छूने चाहिए, इसी मंशा में वह बहू की तरफ दौड़ा ससुर को अपनी ओर आते देख बहु घबरा गई वह ससुर से दूर भागने लगी, बताते हैं कि भागते भागते वह जगंनाथ नाम की झील के बगल से गुजरी, बहू ने तभी अपने सतित्व का वास्ता देकर झील से पानी का पर्दा बनाने के लिए कहा, जिस पर झील से एक जलधारा निकल पड़ी लेकिन ससुर रुकने का नाम नहीं ले रहा था ।

जिससे बहु फिर भागने लगी अब ससुर बहू के पीछे एक जलधारा भी दौड़ने लगी, इसके बाद भी जब बहू ने देखा कि ससुर उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है तो उसने प्रयागराज के बक्शी घाट के समीप यमुना नदी में कूदकर अपनी जान दे दी, इसी दौरान ससुर ने भी उसके पीछे यमुना में छलांग लगा दिया जिससे दोनों की मौत हो गई उनके पीछे आ रही जलधारा भी यमुना में समा गई, तभी से इसे ससुर खदेरी नदी कहा जाने लगा, लेकिन अब इसके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है, सरकार और लोगों को जागरूक होना होगा, ऐसी ऐतिहासिक नदियों को संरक्षित करके बचाना होगा क्योंकि यह प्रकृति की संरचना का अंग है, प्रकृति से ही मानव जीवन संरक्षित होता है इसी में सबका हित है ।

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