ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह
कौशाम्बी : जनपद में चायल तहसील का नाम इतिहास के पन्नों से जुड़ा हुआ है चायल तहसील पहले अंग्रेजों के अधीन चला करती थी। यह तहसील अंग्रेजों के जमाने में क्रूर अफसरों के जुल्मों सितम के लिए जानी जाती है। यहां अंग्रेजों की तूती बोलती थी अंग्रेजों के करिदें जमींदार बगान मालिक जैसा चाहते थे वैसा करते थे। चायल तहसील का निर्माण 1830 से 1842 के बीच कराया गया था उसी समय अंग्रेज़ी सरकार किसानों से ज्यादा लगान वसूलने और फ़सल की पैदावार को बढ़ाने के लिए रामगंग जैसी नहरों का निमार्ण कार्य करा रही थी। कहा जाता है कि तहसील बनाने के बाद अंग्रेजों ने पूरी तरह से चायल क्षेत्र के लोगों पर नियंत्रण कर लिया था। पूरामुफ्ती गेट जहां आज एयरफोर्स स्टेशन है वहीं पर अंग्रेजों का पुराना थाना यानी आर्मी कैम्प था। वहीं से वह पूरे क्षेत्र में पुलिस व्यवस्था को संचालित करते थे जिसका दायरा फतेहपुर बांदा तक फैला हुआ था। चायल तहसील 1830 से लेकर 1920 तक निरंतर चलती रही लेकिन 1920 के बाद इसे बंद करके तहसील सदर इलाहाबाद आज के प्रयागराज से जोड़ दिया गया। क्योंकि क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानीयों की बढ़ती तादाद ने अंग्रेजों को हिला दिया था। उनके द्वारा तहसील के कई अंग्रेज अधिकारियों की हत्याएं कर दी गई।
चायल की पुरानी तहसील में हुई थी अंग्रेज तहसीलदार की हत्या...
चायल के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार सईदुर्रहमान उर्फ़ मुन्ने बताते हैं कि यहीं बगल के गांव अकबरपुर के रहने वाले एक क्रांतिकारी किसान को अंग्रेजों ने लगान के लिए बहुत प्रताड़ित किया। लगान नही चुका पाने पर उनके घर खेत को कुर्क करके जब्त कर लिया। जिसके बाद किसान एक रात मौका पाकर तहसील के अंदर घुस गया और पुरानी तहसील के सबसे पीछे वाले कमरे में सो रहे अंग्रेज तहसीलदार जॉन डेल जिसे लोग जान साहब कहते थे उसकी चापड़ से काटकर हत्या कर दी। जिसके बाद अंग्रेजों के बड़े बड़े अधिकारी तिलमिला उठे। उन्होंने किसान को जिन्दा या मुर्दा गिरफ्तार करने का ईनामी फरमान जारी कर दिया। इस हत्या का खमियाजा कई स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों को उठाना पड़ा। उन्हें भी तरह तरह की यातनाएं दी गई। कुछ दिनों बाद जब किसान को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया तो बिना मुकदमा चलाए ही उसे सरेआम फांसी पर लटका दिया। यहीं तक नहीं लोगों में भय पैदा करने के लिए उसके शव को बैलगाड़ी में बांधकर गांवों में घसीटा गया। कुत्तों से नोचवाया गया।
स्वतंत्रता सेनानियों ने बनाई थी तहसील को जलाने की योजना...
अंग्रेजों द्वारा किसान के साथ की गई क्रूरता को देखकर स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों ने तहसील को जलाने की योजना बनाई। लेकिन इसकी जानकारी अंग्रेजों तक पहुंच गई और उन्हें गिरफ्तार करके नैनी जेल भेज दिया गया। बताते हैं उसी समय तहसील चायल के स्थानांतरित करके इलाहाबाद की सदर तहसील से जोड़ दिया गया। देश आजाद होने के बाद जब इलाहाबाद से अलग होकर कौशाम्बी नया जिला बना तब जाकर 1997 में पुनः तहसील चायल में स्थापित हुई। सरकार ने नई जगह भूमि अधिग्रहण करके नये तहसील भवन परिसर का निर्माण कराया। जिससे अब तहसील से सम्बन्धित काम काज चल रहा है लेकिन तहसील चायल का एक लम्बा और पुराना इतिहास है जो तहसील का पुराना जर्जर भवन अपने में समेटे हुए है। पुराने तहसील परिसर में अब विद्यालय संचालित हो रहा है लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते तहसील भवन धीरे धीरे ध्वस्त होता जा रहा है ।
स्वतंत्रता सेनानी मौलवी लियाकत अली ने कर लिया था तहसील पर कब्जा...
स्वतंत्रता सेनानी मौलवी लियाकत अली ने 1857 के विद्रोह के दौरान अपने साथियों के साथ तहसील तक चायल पर हमला बोलकर कब्जा कर लिया था। मौलवी साहब ने अपने साथियों को यहां पर तहसीलदार बनाकर तैनात कर दिया। लेकिन जनरल नील की क्रूर फौज ने इसे दोबारा मुक्त करा लिया और मौलवी अपने साथियों समेत फरार हो गए। इसके बाद भी इस तहसील में सैकड़ों घटनाएं घटी। दुर्भाग्यवश उन घटनाओं का इतिहास के पन्नों में कहीं जिक्र नही है बस पुराने लोगों की बताई गई बातों तक ही सीमित है। धीरे धीरे लोगों के साथ उस दौर की सभी घटनाएं भी मरती जा रही है अब इस तहसील के बारे में बताने वाले लोगों की संख्या एक दो में रह गई है। यह पुरानी तहसील गुमनामी के गार में समाती जा रही है ।
अंग्रेजों की इस तहसील परिसर में अब भी चलता है विद्यालय...
ब्रिटिश हुकूमत में इस तहसील का स्थानांतरण होने कि बाद यह खाली हो गई थी इसमें अंग्रेजों के पुलिस फोर्स के रहने खाने का इंतजाम चलने लगा। जब अंग्रेज के पुलिस के अधिकारी क्षेत्र में कार्यवाही या गस्त पर निकलते तो पूरी टीम के साथ यहीं रात्रि विश्राम करते थे। जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो उसके कुछ दिनों बाद समाजसेवियों ने इस तहसील में संस्थागत विद्यालय चलाने के लिए सरकार से मांग लिया। जिसके बाद आज तक इसमें उच्च स्तरीय मान्यता प्राप्त इंटर कॉलेज संचालित हो रहा है। लेकिन विद्यालय प्रबंधन द्वारा इस तहसील परिसर के भवनों की सही से देखरेख नही की गई। जिससे भवन जर्जर होकर गिरने की कगार पर आ गया है। तहसील के कुछ भवनों में आज भी बच्चों की क्लास चलाई जाती है जबकि बरसों से भवनों की मरम्मत का कोई काम नही कराया गया है ।
चायल नगर पंचायत घोषित होने के 22 साल बाद पुनः लौट कर आई तहसील...
ब्रिटिश हुकूमत में स्थानांतरित होने के 77 साल बाद जब जिला कौशाम्बी का गठन हुआ तो पुनः चायल में सरकार द्वारा नये तहसील भवन का निर्माण कराया गया। सन 1975 में चायल को नगर पंचायत का दर्जा दिया गया था उसके 29 साल बाद सपा शासन काल के दौरान 2004 में नये तहसील भवनों का निमार्ण कार्य कराया गया। जहां आज भी तहसील का काम काज हो रहा है। वहीं पुरानी तहसील जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था वह गिरने की कगार पर है। तहसील की गिरती दीवारें दरवाजे और छतें अपने अंदर गुलाम भारत की सैकड़ों घटनाएं समेटे हुए हैं ।
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