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जर्जर हुआ अंग्रेजों का गलेरा निरीक्षण भवन, इसी कोठी पर दी गई थी किसान परिवार को फांसी...

ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह 

फतेहपुर : जनपद में धाता ब्लाक अंतर्गत गलेरा में बनी अंग्रेजों की कोठी आज भी अपने अंदर स्वाधीनता संग्राम की यादों को समेटे हुए है। गलेरा जिसे यहां के स्थानीय लोग गलेहरा कहते हैं यहीं पर अंग्रेजी की सन 1900 में बनी कोठी (निरीक्षण भवन) आज भी मौजूद है। भले ही कोठी जर्जर हो चुकी है लेकिन इसकी बनावट इसके आस पास बनी अन्य छोटी बड़ी इमारतें हमें गुलाम भारत की याद दिलाती है। उन दिनों ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इस कोठी का निमार्ण कराया गया था। इसी कोठी की थोड़ी दूर पर रामगंगा नहर की एक शाखा भी अंग्रेजों द्वारा बनवाई गई थी जो आज भी किसानों के लिए सिंचाई का प्रथम साधन बनी हुई है। स्थानीय जानकार बताते हैं कि इस निरीक्षण भवन पर अंग्रेजों के बड़े बड़े अधिकारी का आना ठहरना और रात्रि विश्राम होता था। यही पर उनकी कचहरी भी लगाई जाती थी। जिसमें किसानों से लगान वसूली से लेकर उनकी भूमि अधिग्रहण जब्तीकरण का कार्य किया जाता था। जिसकी गवाही कोठी आज भी दे रही है।

कोठी पर किसानों को अंग्रेज अधिकारी देते थे यातनाएं...

इसी निरीक्षक भवन पर किसानों मजदूरों और स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचार भी किया जाता था। उन्हें यातनाएं दी जाती थी कोड़े लगाये जाते थे विद्रोही साबित होने पर कोठी के समीप नीम के पेड़ों में फांसी पर लटका दिया जाता था। अंग्रेज अधिकारी यह सब लोगों में भय पैदा करने के लिए करते थे उनका मानना था कि ऐसा करने और दिखाने से विद्रोहियों का मनोबल टूट जायेगा।

कोठी के अंदर अंग्रेज अधिकारी की हत्या से मच गया था हड़कंप...

स्थानीय कुछ बुजुर्ग लोग बताते हैं कि सन 1910 में सर क्लाइव नाम का अंग्रेज अधिकारी क्षेत्र के निरीक्षण के दौरान इसी गलेरा कोठी में अपने लाव लश्कर के साथ रात्रि विश्राम को रूका था। उसी रात एक स्थानीय किसान जिसके भाई को अंग्रेजों से कोड़े से पीटकर मार डाला था अपने भाई की मौत का बदला लेने के नियत से कोठी के अंदर घुस गया। जिसके बाद वहीं कमरे में सो रहे सर क्लाइव नाम के अंग्रेज की गला घोटकर हत्या कर दी और उन्हीं के अस्तबल से घोड़ा लेकर फरार हो गया। कोठी के अंदर अंग्रेज अधिकारी की हत्या से इलाहाबाद छावनी तक हड़कंप मच गया।

अंग्रेजों ने नीम के पेड़ पर किसान के परिवार को लगाई थी फांसी...

बताते हैं कुछ दिनों बाद अंग्रेजों ने अपने मुखबिरों के जरिए हत्या करने वाले किसान को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करने के बाद पुलिस सुप्रिटेंडेंट बाउन डेल ने इसी कोठी के नीम के पेड़ पर किसान के पूरे परिवार को निर्दयतापूर्वक फांसी पर लटका दिया। साथ ही देश विद्रोह का मुकदमा बनाकर उसकी सारी सम्पत्ति को जप्त कर लिया गया। किसान की गिरफ्तारी से पहले डेल ने हत्या का खुलासा करने के लिए अनगिनत ग्रामीणों पर कहर ढाया था। उसकी बर्बरता के चलते अधिकतर लोग गांव छोड़कर पलायन कर गए थे। ऐसे ही सैकड़ों गुलाम भारत की कहानियां गलेरा कोठी अपने अंदर समेटे हुए है। यहां के स्थानीय बुजुर्ग लोग यहां घटी कई घटनाओं का जिक्र करते हुए सहम जाते हैं।

देखभाल नहीं होने से जर्जर होता जा रहा है अंग्रेजों का निरीक्षण भवन...

कोठी की गिरती दिवारे उखड़ते दरवाजे पास में बना घोड़ों का अस्तबल, रसोई घर, अधीनस्थ कर्मचारियों के रहने के छोटे भवनों के उखड़ती छते धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है। समय रहते इनका संरक्षित नही किया गया तो यह कोठी केवल अवशेष बनकर रह जायेगी। जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते कोठी के सारे खिड़की दरवाजे चोरी हो चुके हैं। सारे सामान भी गायब हो गए हैं। अब कोठी में साफ सफाई का आभाव है चोरों तरफ जंगल झाड़ी खरपतवार का बसेरा हो गया है। 

निरीक्षण भवनों में होती थी अधिकारियों के ठहरने की व्यवस्था...

अंग्रेजों द्वारा निरीक्षण भवन (Inspection Bungalows / Rest Houses) बनाए जाने के कई खास मकसद थे, जो प्रशासनिक, तकनीकी और रणनीतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण थे। ब्रिटिश अफसर जब दूरदराज के इलाकों का दौरा करते थे (जैसे नहरों, रेलवे, सड़कों या जंगलों का निरीक्षण), तो उन्हें रुकने के लिए एक सुरक्षित, आरामदायक और सुविधाजनक जगह की जरूरत होती थी। निरीक्षण भवन इसी उद्देश्य से बनाए गए। अंग्रेजों द्वारा यहीं पर रुक कर निर्माण कार्य और विकास परियोजनाओं की निगरानी करना इन भवनों का मुख्य उद्देश्य था। नहर, बाँध, पुल, रेलवे लाइन या सड़क जैसी परियोजनाओं का नियमित निरीक्षण भी यही से किया जाता था। इंजीनियर और अधिकारी यहीं से ही आस पास के कार्यस्थलों का भ्रमण करते थे। उनके द्वारा इसी कोठी से जल प्रबंधन और सिंचाई व्यवस्था की स्थिति का जायजा लिया जाता था।

अंग्रेज अधिकारी यही से लोगों पर बनाते थे प्रशासनिक नियंत्रण...

ब्रिटिश शासन में दूर-दराज के गाँवों और इलाकों पर सीधा नियंत्रण बनाए रखना चुनौतीपूर्ण था। जबकि निरीक्षण भवनों से अंग्रेज अफसर गांवों और कस्बों पर नियंत्रण रख सकते थे।पुलिस, कलेक्टर या तहसीलदार यहां आकर ग्रामीणों की समस्याओं को सुनते थे। उनसे कार्यवाही और लगान वसूली भी करते थे कोठियों पर कचहरी लगाई जाती थी। किसान या स्थानीय लोग यहीं पर अपनी शिकायतें दर्ज करवाते थे। कुछ स्थानों पर ये भवन निरीक्षण भवन किलेनुमा निर्माण शैली में भी बनाए गए। ताकि किसी आपदा, बाढ़ या विद्रोह की स्थिति में सुरक्षा मिल सके और अफसरों के लिए एक सुरक्षित स्थान बना रहे।

ब्रिटिश साम्राज्य की ताकत और प्रभाव का यही से होता था विस्तार...

इन भवनों को सुंदर, मजबूत और ऊँची जगहों पर बनाकर ब्रिटिश हुकूमत अपना प्रभुत्व और "सिविलाइजेशन" दिखाना चाहती थी। ये भवन औपनिवेशिक स्थापत्य कला के प्रतीक भी थे। अंग्रेजों ने निरीक्षण भवन सिर्फ प्रशासनिक सहूलियत के लिए नहीं, बल्कि अपने शासन को मजबूती देने और तकनीकी परियोजनाओं की निगरानी के लिए बनाए थे। आज भी भारत में कई जगहों पर ये भवन ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मौजूद हैं।

खेती को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेजों ने की नहर प्रणाली की शुरुआत...


बतादें अंग्रेजों की नहर कोठियों का इतिहास भारत में सिंचाई व्यवस्था के विकास से जुड़ा एक रोचक और ऐतिहासिक विषय है। ये नहर कोठियाँ (Canal Rest Houses या Canal Bungalows) ब्रिटिश शासन के दौरान नहरों के प्रबंधन, निरीक्षण और संचालन के लिए बनाई गई थीं। ब्रिटिश शासनकाल में भारत में कृषि उत्पादन को बढ़ाने और राजस्व संग्रह को सुनिश्चित करने के लिए सिंचाई व्यवस्था को बेहतर करने पर ज़ोर दिया गया। खासकर उत्तर भारत में नदियों से जुड़ी नहर प्रणालियाँ बनाई गईं। जैसे गंगा नहर 1842-1854 तक हरिद्वार से लेकर उत्तर प्रदेश के कई जिलों तक बनाई गई थी। धाता के रहने वाले धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि यह कोठी ब्रिटिश काल की बर्बरता को संजोए हुए है। यहां पर कई घटनाएं हुई थी यह गलेहरा कोठी के नाम से पूरे जिले में मशहूर है। लेकिन इसकी देखरेख नही होने से अब यह धीरे धीरे गिरती जा रही है। हम लोगों ने कई बार सरकार से इस कोठी को ठीक कराकर संग्रहालय बनाने की मांग कर चुके हैं लेकिन अभी तक इस पर कोई पहल नहीं की गई है।

नहर कोठियों का निर्माण अंग्रेजों का बड़ा मकसद...

जब ये लंबी नहरें बनाई गईं तो उनके साथ हर कुछ किलोमीटर पर निरीक्षण भवन नहर कोठियाँ बनाई गईं। इन्हीं में गलेरा की कोठी भी शामिल हैं। इनका उद्देश्य था अंग्रेजों के बड़े अधिकारियों के रुकने की व्यवस्था करना। नहर की निगरानी और रखरखाव की देखभाल करना। क्षेत्र के किसानों मजदूरों विद्रोहियों पर नज़र बनाये रखना। अंग्रेजों के मकसद मे शामिल थे। इन कोठियों को आमतौर पर ईंट, चूना और टाइल्स से ब्रिटिश शैली में बनाया गया था। आसपास बाग-बगिचे, पानी की टंकियाँ और कुछ जगहों पर अस्तबल भी होते थे। नहर कोठियाँ औपनिवेशिक (colonial) शैली में बनी होती थीं। कल्याणपुर कचरौली के रहने वाले उदय भान सिंह बताते हैं कि कोठी की देखरेख चार साल पहले होती थी अब यहां कोई जिम्मेदार नहीं आता है। नतीजन कोठी के खिड़की दरवाजे और कीमती सामान चोर चोरी कर ले गये। कोठी में हर तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है। 

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