ब्यूरो रिपोर्ट-सुरेश सिंह
प्रयागराज : जनपद में फतेहपुर घाट गांव के समीप स्थित महुआ की बाद में रविवार को एक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन श्री गुरु सेत बहादुर जी के पुरम शिस्य पवन कुमार की ओर से आयोजित किया गया। इस सत्संग कार्यक्रम में दूर दराज से आये हुए श्रद्धालुओं को गुरु की महिला और उनसे मिलने वाले आत्म चिंतन ज्ञान के बारे में बताया गया। सत्संग की शुरुआत करते हुए पहले पावन कुमार ने गुरु रूपी भगवान की आरती और वंदना प्रस्तुत किया। जिसके बाद बारी बारी से श्रद्धालुओं और भक्तों ने अपने अपने प्रवचन कहे। पावन कुमार ने सत्संग में बताया कि हमारे गुरु श्री सेत बहादुर जी के दिए ज्ञान और आशीर्वाद से हम देश और समाज हित मे ऐसे कार्यक्रमओं का आयोजन करते रहते हैं। सत्संग कार्यक्रम के आयोजन में हमारी संस्था गुरु संत गुरु भ्रंम, गुरु संत महारूपी लक्ष्मी के तत्वावधान में अध्यक्ष जापान सिंह, उपाध्यक्ष धर्म नारायण सिंह, सचिव रामानंद पांडेय, कोषाध्यक्ष राज बहादुर, सदस्य पवन कुमार, रागनी साहू, कुशुम देवी, शिव पाल आदि का विशेष सहयोग रहता है। ऐसे सत्संग कार्यक्रमों के माध्यम से हम लोगों को उनके रोग क्लेस, दुःखों को दूर करने का काम करते हैं। सत्संग में प्रवचन करते हुए पावन कुमार ने बताया कि गुरु की महिमा अत्यंत महान और अनमोल होती है। विभिन्न संतों, ग्रंथों और सत्संगों में गुरु को परमात्मा से भी ऊपर बताया गया है। कई प्रमुख बातें हैं जो सत्संगों में गुरु की महिमा के रूप में कही जाती हैं।
गुरु ही सच्चे ज्ञान का स्रोत है, गुरु बिन ज्ञान नहीं...
गुरु अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन में प्रकाश लाते हैं। जैसे दीपक अंधेरे को मिटाता है, वैसे ही गुरु आत्मा को ज्ञान से प्रकाशित करते हैं। गुरु बिन ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिटे न मोहि। गुरु के बिना आत्मज्ञान असंभव है। वे शिष्य को सच्चाई का मार्ग दिखाते हैं। गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥ कबीरदास जी कहते हैं कि यदि गुरु और भगवान दोनों सामने खड़े हों तो पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए क्योंकि उन्होंने ही भगवान से परिचय कराया।
सच्चा गुरु ही मोक्ष का द्वार खोलते है, गुरु मार्गदर्शक और रक्षक भी होते हैं...
गुरु कृपा से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल सकता है। उनका आशीर्वाद जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल देता है। वे केवल शिक्षा नहीं देते, बल्कि हर संकट में रक्षा भी करते हैं चाहे वह मानसिक हो, आध्यात्मिक हो या भौतिक। गुरु ही ब्रह्मज्ञान की कुंजी देते हैं, जिससे आत्मा संसार बंधन से मुक्त होती है।
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